ग्राम सभा गढ़ वासियों की सिलारी में नागराज देवता पूजन दिवस पर विशेष कवरेज देखिए GANGA 24 EXPRESS पर
: *गढ़वाल में जातियां* *एक नजर में* गढ़वाल में जिस प्रकार से ब्राह्मण तीन भाग में विभक्त हैं, क्षत्रिय यहां दो भागों में विभक्त हैं। एक असली क्षत्रिय राजपूत और दूसरे खस राजपूत। राजपूत का अभिप्राय असली क्षत्रिय राजपूत से है। खस राजपूत जाति, राजपूत और खसिया जाति के मेल से पैदा हुई है। राजपूत जाति में उनके वंश परंपरा धार्मिक व लौकिक रिवाज अब भी विद्यमान पाए जाते हैं, हां कुछ परिवर्तन भी हुए हैं। खस राजपूतों में खसिया जाति का रिवाज पाया जाता है। विवाह संबंध भी खसिया जाति से ही होता है।
*1-परमार* (पंवार)-इनकी पूर्व जाति परमार है। ये यहां धार गुजरात से सम्वत 945 में आए। इनका गढ़ गढ़वाल राजवंश है।
*2-कुंवरः* ये पंवार वंश की उपशाखा है।
*3-रौतेलाः* पंवार वंश की उपशखा।
*4-असवालः* ये नागवंशी ठाकुर हैं। ये दिल्ली के समीप रणथम्भौर से सम्वत 945 में यहां आए। कोई इनको चह्वान कहते हैं। अश्वारोही होने से असवाल थोकदार हैं।
*5-बर्त्वाल* ये पंवार वंश के हैं। जो कि सम्वत 945 में उज्जैन/धारा से यहां आए। यहां इनका प्रथम गांव बडे़त है।
*6-मंद्रवाल*(मनुराल)* ये कत्यूरी वंश के हैं। ये सम्वत 1711 में कुमांऊ से आकर यहां बसे।
*7-रजवारः* कत्यूरी वंश के हैं। सम्वत 1711 में कुमांऊ से आए। इनको कुमांऊ के कैंत्यूरा जाति के राजाओं की संतति बताते हैं। *8-चंदः* ये सम्वत 1613 में यहां आए। ये कुमांऊ के चंद राजाओं की संतान में से हैं।
*9-रमोलाः* ये चह्वान वंश के हैं। सम्वत 254 में मैनपुरी से यहां आए। से पुरानी ठाकुरी सरदारों की संतान हैं। रमोली में रहने के कारण ये रमोला हैं।
*10-चह्वानः* ये चह्वान वंश के हैं और मैनपुरी से यहां आए। इनका गढ़ ऊप्पूगढ़ था।
*11-मियांः* ये सुकेत और जम्मू से यहां आए। ये गढ़वाल के साथ नातेदारी होने के कारण यहां आए।
*रावत संज्ञा के राजपूत*
*12-दिकोला रावतः* इनकी पूर्व जाति (वंश) मरहठा है। ये महाराष्ट्र से सम्वत 415 में यहां आए। इनका गढ़ दिकोली गांव है।
*13-गोर्ला रावतः* ये पंवार वंश के हैं। गोर्ला रावत गुजरात से सम्वत 817 में यहां आए। इनका प्रथम गांव यहां गुराड़ गांव है।
*14-रिंगवाड़ा रावतः* ये कैंत्यूरा वंश के हैं। ये कुमांऊ से सम्वत 1411 में यहां आए। इनका गढ़ रिंगवाड़ी गांव था।
*15-फर्सुड़ा रावतः* विस्तार अज्ञात।
*16-बंगारी रावतः* ये बांगर से सम्वत 1662 में आए। बांगरी का अपभ्रंस बंगारी था।
*17-घंडियाली रावतः* विस्तार अज्ञात।
*18-कफोला रावतः* विस्तार अज्ञात।
*19-बुटोला रावतः* ये तंअर वंश के हैं। ये दिल्ली से सम्वत 800 में यहां आए। इनका मूलपुरुष बूटा सिंह था।
*20-बरवाणी रावतः* ये मासीगढ़ से सम्वत 1479 में आए। इनका प्रथम गांव नैर्भणा था।
*21-झिंक्वाण रावतः* विस्तार अज्ञात।
*22-जयाड़ा रावतः* ये दिल्ली के समीप से आए। इनका गढ़ जयाड़गढ़ था।
*23-मन्यारी रावतः* ये मन्यार पट्टी में बसने के कारण मन्यारी रावत कहलाए।
*24-मैरोड़ा रावतः* विस्तार अज्ञात।
*25-गुराड़ी रावतः* विस्तार अज्ञात।
*26-कोल्ला रावतः* विस्तार अज्ञात।
*27-जवाड़ी रावतः* इनका प्रथम गांव जवाड़ी गांव है।
*28-परसारा रावतः* ये चह्वाण वंश के हैं, जो कि सम्वत 1102 में ज्वालापुर से यहां आए, इनका गढ़ परसारी गांव है।
*29-फरस्वाण रावतः* ये मथुरा के समीप से सम्वत 432 में यहां आए। इनका प्रथम गांव फरासू गांव था।
*30-जेठा रावतः* विस्तार अज्ञात।
*31-तोदड़ा रावतः* ये कुमांऊ से आए।
*32-मौंदाड़ा रावतः* ये पंवार वंश के हैं। ये सम्वत 1405 में आए, इनका प्रथम गांव मौंदाड़ी गांव था।
*33-कड़वाल रावतः* विस्तार अज्ञात।
*34-कयाड़ा रावतः* ये पंवार वंश के हैं। ये सम्वत 1453 में आए।
*35-गविणा रावतः* गवनीगढ़ इनका गढ़ था।
*36-तुलसा रावतः* विस्तार अज्ञात।
*37-लुतड़ा रावतः* ये चैहान वंश के हैं। ये सम्वत 838 में लोहा चांदपुर से यहां आए।
*बिष्ट राजपूत*
*38-बगड़वाल बिष्टः* यह लोग सिरमौर से 1519 सम्वत में आए, इनका गढ़ बगोड़ी गांव है।
*39-वेन्द्वाल बिष्टः* विस्तार अज्ञात।
*40-कफोला बिष्टः* यह यदुवंशी हैं, जो कि कम्पीला से आए। इनकी थात कफोलस्यू है।
*41-चमोला बिष्टः* ये पंवार वंशी हैं। ये उज्जैन से सम्वत 1443 में आए।
*42-इड़वाल बिष्टः* ये परिहार वंशी हैं। जो कि दिल्ली के समीप से यहां सम्वत 913 में आए। इनका गढ़ ईड़ गांव है।
*43-संगेला बिष्टः* ये गुजरात से सम्वत 1400 में आए।
*44-मुलाणी बिष्टः* ये कैंत्यूरा वंश के हैं यानि इनकी पूर्व जाति कैंत्यूरा है। ये कुमांऊ से सम्वत 1403 में आए। इनका गढ़ मुलाणी गांव है।
*45-धम्मादा बिष्टः* ये चह्वान वंश के हैं। ये दिल्ली से आए।
*46-पडियार बिष्टः* ये परिहार वंश के हैं। ये धार से 1300 सम्वत में आए।
*47-तिल्ला बिष्टः* ये चित्तौड़ से यहां आए।
*48-बछवाण बिष्टः* विस्तार अज्ञात।
*भंडारी राजपूत-*
*49-काला भंडारीः* विस्तार अज्ञात।
*50-तेली भंडारीः* विस्तार अज्ञात।
*51-सोन भंडारीः* विस्तार अज्ञात।
*52-पुंडीर भंडारीः* विस्तार अज्ञात।
*नेगी राजपूत जाति*
*53-खत्री नेगीः* विस्तार अज्ञात।
*54-पुंडीर नेगीः* पुंडीर नेगी का पूर्व जाति (वंश) पुण्डीर है। ये सम्वत 1722 में सहारनपुर से आकर यहां बसे। *पृथ्वीराजरासो* में ये दिल्ली के समीप के होने बताए गए हैं।
*55-बगलाणा नेगीः* ये बागल से सम्वत 1703 में यहां आए। इनका मुख्य गांव शूला है।
*56-मोंणा नेगी* विस्तार अज्ञात।
*57-खुंटी नेगीः* इनकी पूर्व (वंश) मियां है। ये सम्वत 1113 में नगरकोट-कांगड़ा से आकर यहां बसे। यहां इनका प्रथम गांव यानि की गढ़ खूँटी गांव है।
*58-सिपाही नेगीः* इनकी पूर्व जाति (वंश) भी मियां है। ये सम्वत 1743 में यहां आए।
*59-संगेला नेगीः* इनकी पूर्व जाति (वंश) जाट राजपूत है। ये सम्वत 1769 में सहारनपुर से आकर यहां बसे।
*60-खडखोला नेगीः* इनकी पूर्व जाति (वंश) कैंत्यूरा है। ये कुमांऊ से सम्वत 1169 में आए। ये खडखोली गांव में कलवाड़ी के थोकदार रहे।
*61-सौंद नेगीः* इनकी पूर्व जाति (वंश) राणा है। ये कैलाखुरी से आए और सौंदाड़ी गांव में बसे।
*62-भोटिया नेगीः* इनकी पूर्व जाति (वंश) हूण राजपूत है। ये हूण देश से यहां आकर बसे।
*63-पटूड़ा नेगीः* ये अन्यत्र से यहां आकर पटूड़ा गांव में बसे।
*64-महरा (म्वारा), महर नेगीः* इनकी पूर्व जाति (वंश) गुर्जर राजपूत है। ये लंढौरा से आकर यहां बसे।
*65-बागड़ी या बागुड़ीः* ये सम्वत 1417 में मायापुर से आकर बागड़ में बसे।
*66-सिंग नेगीः* इनकी पूर्व जाति (वंश) बेदी है। ये सम्वत 1700 में पंजाब से आकर यहां बसे।
*67-जम्बाल नेगीः* इनकी पूर्व जाति (वंश) मियां है। ये जम्मू से आकर यहां बसे।
*68-रिखोला नेगीः* रिखल्या राजपूत *डोटी नेपाल* के *रीखली गर्खा* से आए।
*69-हाथी नेगीः* विस्तार अज्ञात।
*70-जरदारी नेगी* विस्तार अज्ञात।
*71-पडियार नेगीः* इनकी पूर्व जाति (वंश) *परिहार* है। ये सम्वत 1860 में दिल्ली के समीप से आए।
*72-लोहवान नेगीः* इनकी पूर्व जाति (वंश) चह्वाण है। ये सम्वत 1035 में दिल्ली से आकर लोहबा परगने में बसे।
*73-नेकी नेगीः* विस्तार अज्ञात।
*74-गगवाड़ी नेगीः* ये सम्वत 1476 में मथुरा के समीप से आकर गगवाड़ी गांव में बसे।
*75-चोपड़िया नेगीः* ये सम्वत 1442 में हस्तिनापुर से आकर चोपड़ा गांव में बसे।
*76-नीलकंठी नेगीः* विस्तार अज्ञात।
*77-सरवाल नेगीः* ये सम्वत 1600 में पंजाब से आकर यहां बसे।
*गुसाईं राजपूत-*
*78-कंडारी गुसाईंः* ये मथुरा के समीप से सम्वत 428 में यहां आए। कंडारीगढ़ के ठाकुरी राजाओं के वंश की जाति है।
*79-घुरदुड़ा गुसाईंः* विस्तार अज्ञात।
*80-पटवाल गुसाईंः* ये प्रयाग से सम्वत 1212 में यहां आए। पाटा गांव में बसने से इनके नाम से पट्टी नाम पड़ा।
*81-रौथाण गुसाईंः* ये सम्वत 945 में रणथंभौर दिल्ली के समीप से आए।
*82-खाती गुसाईः* खातस्यूं इनकी थात की पट्टी है।
*83-सजवाण ठाकुरः* ये मरहटा वंश के हैं और महाराष्ट्र से आए हैं। ये प्राचीन ठाकुरी राजाओं की संतान हैं।
*84-मखलोगा ठाकुरः* ये पुंडीर वंश के हैं। सम्वत 1403 में ये मायापर से आए। इनका प्रथम गांव मखलोगी है।
*85-तड्याल ठाकुरः* इनका प्रथम गांव तड़ी गांव है।
*86-पयाल ठाकुरः* ये कुरुवंशी वंशज हैं। ये हस्तिनापुर से यहां आए। इनका प्रथम गांव पयाल गांव है।
*87-राणाः* ये सूर्यवंशी वंशज हैं। सम्वत 1405 में चितौड़ से गढ़वाल में आए।
*88-राणा राजपूत* इनका वंश नागवंशी है। ये हुणदेश से यहां आए। ये प्राचीन निवासियों में से हैं।
*89-कठैतः* ये कटोच वंश के हैं। ये कांगड़ा से यहां आए।
*90-वेदी खत्रीः* ये खत्री वंश के हैं और सम्वत 1700 में नेपाल से यहां आए।
*91-पजाईः* ये कुमांऊ से यहां आए।
*92-रांगड़़ः* ये रांगढ़ वंश के हैं और सहारनुपर से यहां आए।
*93-कैंत्यूराः(कैतुरा)* ये कैंत्यूरा वंश के हैं और कुमांऊ कत्यूर से यहां आए।
*94-नकोटीः* ये नगरकोटी वंश के हैं। ये नगरकोट से आए। नकोट गांव में बसने के कारण नकोटी कहलाए।
*95-कमीणः* विस्तार अज्ञात।
*96-कुरमणीः* ये कुर्म मूलपुरुष के नाम से कुरमणी कहलाए।
*97-धमादाः* ये पुराने गढ़ाधीश की संतान हैं।
*98-कंडियालः* इनका प्रथम गांव कांडी गांव है।
*99-बैडोगाः* इनका प्रथम गांव बैडोगी है।
*100-मुखमालः* इनका प्रथम गांव मुखवा या मुखेम गांव है।
*गढ़वाल की ब्राहमण जातियां*
गढ़वाल में ब्राह्मण जातियां मूल रूप से तीन हिस्सो में बांटी गई है *1-सरोला* *2-गंगाड़ी* *3-नाना* सरोला और गंगाड़ी 8 वीं और 9वीं शताब्दी के दौरान मैदानी भाग से उत्तराखंड आए थे। पंवार
शासक के राजपुरोहित के रूप में सरोला आये थे। गढ़वाल में आने के बाद सरोला और गंगाड़ी लोगों ने नाना गोत्र के ब्राह्मणों से शादी की। सरोला ब्राह्मण के द्वारा बनाया गया भोजन सब लोग खा लेते है परंतु गंगाड़ी जाति का अधिकार केवल अपने सगे-सम्बन्धियों तक ही सीमित है।
*01.नौटियाल*
आज से लगभग 700 साल पहले टिहरी से आकर तली चांदपुर में नौटी गाव में आकर बस गए !
आप के आदि पुरष है *नीलकंठ और देविदया* जो गौर ब्राहमण है।।
नौटियाल चांदपुर गढ़ी के राजा कनकपाल के साथ सम्वत 945 में *धर मालवा* से आकर यहाँ बसे, इनके बसने के स्थान का नाम *गोदी* था जो बाद में *नौटी* नाम में परिवर्तित हो गया और यही से ये जाति *नौटियाल* नाम से प्रसिद्ध हुई।
*2. डोभाल*
गढ़वाली ब्राह्मणों की प्रमुख शाखा गंगाडी ब्राह्मणों में डोभाल जाति सम्वत 945 में संतोली कर्नाटक से आई मूलतः कान्यकुब्ज ब्राह्मण जाति थी।
मूल पुरुष *कर्णजीत* डोभा गाँव में बसने से *डोभाल* कहलाये।
गढ़वाल के पुराने राजपरिवार में भी इस जाति के लोग ऊँचे पदों पर भी रहे हैं।
ये *चौथों* की जातीय सरोलाओ की *बाराथोकी* जातियों के सम्कक्ष थी जो नवी-दसवी सदी के आसपास आई और *चोथोकी* कहलाई।
*3. रतूड़ी*
सरोला जाति की प्रमुख जाति रतूडी मूलत अद्यागौड़ ब्राह्मण है, जो *गौड़ देश* से सम्वत 980 में आये थे।
इनके मूलपुरुष *सत्यानन्द* और *राजबल* सीला पट्टी के चांदपुर के समीप रतुडा गाँव मैं बसे थे और यही से ये रतूडी नाम से प्रसिद हुए।
इस जाति के लोगो का भी गढ़वाल नरेशों पर दबदबा लम्बे समय तक बरकरार रहा था।
गढ़वाल का सर्व प्रथम प्रमाणिक इतिहास लिखने का श्रेय इसी जाति के युग पुरुष टिहरी राजदरबार के वजीर *पंडित हरिकृष्ण रतूडी* को जाता है।
रतुडा में माँ भगवती चण्डिका का प्रसिद्ध *थान* भी है।
*4. गैरोलाः*
गैरोला लोगों का पैतृक गाव चांदपुर तैल पट्टी है।
इनके आदि पुरुष *जयानन्द विजयानन्द* हैं। ये 972 में गैरोली गांव में बसे थे। इनकी पूर्व जाति *आद्यगौड़* है।
*5. डिमरी*
आप दक्षिण से आकर पट्टी तली चांदपुर *दिमार(डिम्मर)* गाव में आकर बस गए !
आप द्रविड़ ब्राह्मण है।।
*6. थपलियाल*
आप 1100 साल पहले पट्टी *सीली चांदपुर के ग्राम थापली* में आकर बस गए।
आप के आदि पुरुष *जैचानंद माईचंद* और *जैपाल* हैं, जो गौर ब्राह्मण हैं।।
*यह गढ़वाली ब्राह्मणों की बेहद खास जाति है, जिनकी आराध्य माँ ज्वाल्पा है।*
इस जाति के विद्वानों की *धाक* चांदपुर गढ़ी, देवलगढ़ , श्रीनगर राजदरवार, और टिहरी राजदरबार में बराबर बनी रही थी।
थपलियाल अद्यागौड़ है जो गौड देश से सम्वत 980 में *थापली* गाँव में बसे और इसी नाम से उनकी जाति संज्ञा *थपलियाल* हुई।
ये जाति भी गढ़वाल के *मूल बाराथोकी सरोलाओँ* में से एक है।
नागपुर में *थाला गाँव* थपलियाल जाति का प्रसिद गाँव है, जहाँ के विद्वान आयुर्वेद के बडे सिद्ध ब्राह्मण थे।
*7. बिजल्वाण*
आपके आदि पुरूष है *बीजोध् बिज्जू*। इन्ही के नाम पर ही इनकी जाति संज्ञा *बिज्ल्वाण* हुई।
गढ़वाल की सरोला जाति मैं बिज्ल्वाण एक प्रमुख जाति संज्ञा है। इनकी पूर्व जाति गौड़ थी ,जो संवत 1100 के आसपास गढ़वाल के चांदपुर परगने में आई थी, और इस जाति का मूल स्थान *वीरभूमि बंगाल* है।।
*8. लखेड़ा*
लगभग 1000 साल पहले कोलकत्ता के *वीरभूमि* से आकर उत्तराखंड में बसे।
उत्तराखंड के लगभग 70 गांवों में फैले लखेड़ा लोग एक ही पुरूष श्रद्धेय *भानुवीर नारद जी* की संतानें हैं।
ये सरोला ब्राह्मण है।।
*9. बहुगुणा*
गढ़वाली ब्राह्मणों की प्रमुख शाखा गंगाडी ब्राह्मणों में बहुगुणा जाति सम्वत 980 में *गौड़ बंगाल* से आई मूलतः *अद्यागौड़* जाति थी।
*10. कोठियाल*
सरोला जाति की यह एक प्रमुख शाखा है, जो चांदपुर में *कोटी* गाँव में आकर बसी थी और यहाँ बसने से ही *कोठियाल* जाति नाम से प्रसिद हुई।
इनकी मूल जाती *गौड़* है।
चांदपुर गढ़ी के राजपरिवार द्वारा बाद में कोटी को सरोला मान्यता प्रदान की गयी थी। इस जाति के अधिकार क्षेत्र में बद्रीनाथ मंदिर की पूजा व्यवस्था में हक हकूक भी शामिल है।
*11. उनियाल*
839 इ. पू. *जयानंद* और *विजयानंद* नाम के दो चचेरे भाई (ओझा और झा) दरभंगा (मगध-बिहार) से श्रीनगर, गढ़वाल में आये। वो *मैथली ब्राह्मण* थे।
प्रसिद्ध कवि *विद्यापति* और राजनीतिज्ञ, अर्थशास्त्री *चाणक्य* *(कौटिल्य)* उनके पूर्वजों में से एक थे।
इन्हें पान्डित्य जागिरैं दी गई थी, इसलिए *ओझा* और *झा* (दो अलग गोत्र *कश्यप* और *भारद्वाज*) की एक जाति *ओनियाल* बनी, जो बाद में *उनियाल* बन बनकर प्रसिद्ध हुई।
माता भगवती सभी उनियाल, ओजा, झा और द्रविड़ ब्राह्मणों की कुलदेवी हैं।
*12. पैनुली(पैन्यूली)*
पैनुली (पैन्यूली) मूलतः गौड़ ब्रह्मण है।
दक्षिण भारत से 1207 में मूल पुरुष *ब्रह्मनाथ* द्वारा पन्याला गाँव रमोली मे बसने से इस जाति का नाम पैनुली (पैन्यूली) प्रसिद हुआ।
इस जति के कई लोग श्रीनगर राजदरबार और टिहरी राजदरवार में उच्च पदों पर आसीन हुए।
इस जाति के *श्री परिपूर्णा नन्द पैन्यूली* 1971-1976 में टिहरी गढ़वाल के सांसद भी रहे है।
*13. ढौंडियाल*
गढ़वाल नरेश *राजा महिपत शाह* द्वारा 14 और 15 वी सदी में *चौथोकी वर्ग* में वृद्धि करते हुए 32 अन्य जातियों को इस वर्ग में सामिल किया था जिनमे *ढौंडियाल* प्रमुख जाति थी।
इस जाति के मूल पुरुष गौड़ जाति के ब्राह्मण थे जो राजपुताना से सम्वत 1713 में गढ़वाल आये थे।
मूल पुरुष *पंडित रूपचंद* द्वारा *ढोण्ड* गाँव बसाया गया था, जिस कारण इन्हें *ढौंडियाल* कहा गया।
*14. नौडियाल*
मूलतः गढ़वाली गंगाडी ब्रह्मण हैं, जिनकी पूर्व जाति संज्ञा गौड़ थी।
मूल स्थान *भृंग चिरंग* से सम्वत 1543 में आये पंडित *शशिधर* द्वारा *नोडी* गाँव बसाया गया था।
नोडी गाँव के नाम पर ही इस जाति को नौडियाल कहा गया।
*15. पोखरियाल*
मूलतः *गौड़ ब्रह्मण* है इनकी पूर्व जाति सज्ञा *विल्हित* थी जो संवत 1678 में *विलहित* से आने के कारण हुई।
इस जाति के मूल पुरुष जो पहले विलहित और बाद में *पोखरी गाँव जिला पौडी गढ़वाल* में बसने से पोखरियाल प्रसिद हुए।
इस जाति नाम की कुछ ब्राह्मण जातियाँ हिन्दू राष्ट्र नेपाल में भी है, जो प्रसिद शिव मंदिर पशुपति नाथ में पूजाधिकारी भी है।
ये जाति गढ़वाल में पौडी के अतिरिक्त चमोली में भी बसी हुई है , *टिहरी में पोखरियाल जाति नाम से राजपूत जाति भी है, जो सम्भवतः किसी पुराने गढ़ के कारण पड़ी हुई हो।*
*16. सकलानी*
गढ़वाल नरेशों द्वारा मुआफी के हकदार *भारद्वाज कान्यकुब्ज ब्राह्मणों* की यह शाखा सम्वत 1700 के आसपास अवध से सकलाना गाँव में बसी।
इनके मूल पुरुष *नाग देव* ने सकलाना गाँव बसाया था, बाद में इस जाति के नाम पर इस पट्टी का नाम *सकलाना पट्टी* पड़ा।
राज पुरोहितो की यह जाति अपने स्वाभिमानी स्वभाव के कारण राजा द्वारा विशेष सुविधाओ से आरक्षित किये गये थे और जागीरदारी भी प्रदान की गयी।
*17. चमोली*
मूल रूप से *द्रविड़ ब्राह्मण* है जो रामनाथ विल्हित से 924 में आकर गढ़वाल के चांदपुर परगने के चमोली गाँव में बसे।
सरोलाओ की एक प्रमुख जाति जो मूल रूप से चमोली गाँव में बसने से अस्तित्व में आई थी जिसे *पंडित धरणी धर, हरमी, विरमी* ने बसाया था और गाँव के नाम पर ही ये जाति चमोली कहलाई।
ये जाति सरोलाओ के सुप्रसिद्ध *बारहथोकी* में से एक प्रमुख है जो नंदा देवी राजजात में प्रमुख भूमिका निभाती है।
*18. काला*
गढ़वाल की ये वो प्रसिद जाति है, जिसने आजादी के बाद सबसे अच्छी प्रगति की है।
इस जाति को अभी तक सबसे अधिक प्रथम श्रेणी के अधिकार मोजूद है।
सुमाडी इस जाति का सबसे अधिक प्रसिद गाँव है। जहा के *पन्थ्या दादा* एक महान इतिहास पुरुष हुए है।
*19. पांथरी*
मूलतः सारस्वत ब्राह्मण हैं, जो सम्वत 1543 में जालन्धर से आकर गढ़वाल के पंथर गाँव में बसे और *पांथरी* जाति नाम से प्रसिद हुए।
इस जाति के मूल पुरुष *अन्थु पन्थराम* ने ही पंथर गाँव बसाया था।
*20. खंडूरी(खंडूड़ी)*
सरोलाओ की *बारह थोकी जातियों* में से एक खंडूरी मूलतः *गौड़ ब्राह्मण* है, जिनका आगमन सम्वत 945 में *वीरभूमि बंगाल* से हुआ।
इनके मूल पुरुष *सारन्धर* एवं *महेश्वर* खंडूड़ी गाँव में बसे और खंडूड़ी जाति नाम से प्रसिद हुए।
इस जाति के अनेक वंसज गढ़वाल राज्य में *दीवान एवं कानूनगो* के पदों पर भी रहे।
बाद में राजा द्वारा इन्हें *थोकदारी* दे कर गढ़वाल के विभिन्न गाँवों को इन्हे जागीर में दे दिया था।
*21. सती*
गढ़वाल की सरोला जाति मे से एक सती , गुजरात से आई ब्राह्मण जाति है, जो चांदपुर गढी के शासको के निमंत्रण पर चांदपुर और कपीरी पट्टी मैं बसी थी।
इस जाति की एक शाखा नौनी(नवानी) भी है।
इस जाति नाम के ब्राह्मण गढ़वाल के कई कोनो में फैले है, यहाँ तक कि इस जात के कुछ ब्राह्मण कुमाऊँ में भी है।
*22. कंडवाल*
मूलतः सरोला जाति है, जो कांडा गाँव में बसने से कंडवाल कहलाई है।
गढ़वाल के इतिहास में क्रमांक 19 से 26 तक की कुल आठ जातियाँ *सरोला सूची* मे शामिल की गयी है , जिनमे कंडवाल जाति भी है।
कंडवाल जाति मूलतः कुमाऊनी जाति है, जो कांडई नामक गाँव से यहाँ चांदपुर में सबसे पहले आकर बसी थी, जिनके मूलपुरुष का नाम *आग्मानंद* था। नागपुर की एक प्रसिद जाति *कांडपाल* भी इससे अपना सम्बन्ध बताती है, जिनके अनुसार (कांडपाल) का मूल गाँव *कांडई* आज भी *अल्मोडा* में है, जहाँ के ये मूलतः *कान्यकुब्ज (भारद्वाज गोत्री) कांडपाल वंशज* है।
यही कुमाऊँ से सन 1343 में *श्रीकंठ* नाम के विद्वान से *निगमानंद* और *आगमानंद* ने कांडपाल वंश को यहाँ बसाया था, जिनमे से एक भाई चांदपुर में बस गया और राजा द्वारा इन्हें ही सरोला मान्यता प्रदान कर दी गयी और चांदपुर में ये लोग *कंडवाल* नाम से प्रसिद्ध हुए।
इसी जाति के दूसरे स्कन्ध में से *निगमानंद* ने 1400 में कांडई गाँव बसाया था, कांडई में बसने से इन्हें *कंडयाल* भी कहा गया, जो बाद मैं अपने मूल जाति नाम *कांडपाल* से प्रसिद हुआ।
*23. ममगाईं*
मूलतः गौड़ ब्रह्मण है जो उज्जैन से आकर मामा के गाँव में बसने से *ममगाईं* कहलाये थे।
ये जाति मूलतः पौडी जिले की है लेकिन टिहरी और उत्तरकाशी और रुद्रप्रयाग जिले में भी इस जाति के गाँव बसे है।
महाराष्ट्र मूल के होने से वहां भी इस जाति के कुछ लोग रहते है। नागपुर में भी इस जाति के कुछ परिवार बसे है, जिनके रिश्ते नाते टिहरी और श्रीनगर के ब्राह्मणों से होते है।
*24. भट्ट*
भट्ट सामन्यता एक विशेष जाति संज्ञा है , जिसका आशय प्रसिद्धि और विद्वता से है।
सामान्यतः ये एक प्रकार की उपाधि थी जो राजाओ द्वारा प्रदत्त होती थी। गढ़वाल की अन्य जाति सज्ञाओ के अनुरूप ये उपाधि भी बाद में जातिनाम में बदल गयी, कुछ लोग इनका मूल *भट्ट* ही मानते है।
गढ़वाल में भट्ट जाति सबसे अधिक प्रसार वाली जाति संज्ञा है। ये सभी स्वयं को *दक्षिण वंशी* मानते है।
कालांतर में इनमे से अनेक ने अपने नए जाति नाम भी रखे है, *भट्ट ही एक मात्र जाति है जो गढ़वाल में सरोला सूची , गागाड़ी सूची और नागपुरी सूची में शामिल की गयी है।*
*25. पन्त*
भारद्वाज गोत्रीय ब्राह्मण है, जिनके मूल पुरुष *जयदेव पन्त* का कोकण महाराष्ट्र से 10 वी सदी में चंद राजाओ के साथ कुमाऊँ में आगमन हुआ।
इनके वंसज *शर्मा श्रीनाथ नाथू* एवं *भावदास* के नाम भी *चार थोको* मैं विभाजित हुए, ये ही बाद में मूल कुमाउनी ब्राह्मण जाति *पन्त* हुई।
बाद में अल्मोडा, उप्रडा, कुंलता, बरसायत, बड़ाउ, म्लेरा में बसे शर्मा पन्त, श्रीनाथ पन्त, परासरी पन्त, और हटवाल पन्त, प्रमुख *पन्त* बने।
ये सभी कुमाउनी पन्त थे, बाद में इसी जाति के कुछ परिवार गढ़वाल के विभिन्न इलाको में बसे, विद्वता और ज्योतिष के क्षेत्र उलेखनीय कार्यो ने यहाँ भी इन्हें उच्च स्तर तक पहुचा दिया।
पन्त जाति का नागपुर में प्रसिद गाँव *कुणजेटी* है। ये नागपुर के 24 मठ मंदिरों में आचार्य वरण के अधिकारी है।
*26. बर्थवाल(बड़थ्वाल)*
मूलतः सारस्वत ब्राह्मण है, जो संवत 1543 में गुजरात से आकर गढ़वाल में बसे।
इस जाति के मूल पुरुष *पंडित सूर्य कमल मुरारी*, बेड़ेथ नामक गाँव में बसे और बाद में जिनके वंसज बर्थवाल(बड़थ्वाल) जाति नाम से प्रसिद्ध हुए।
*27. कुकरेती*
मूलतः द्रविड़ ब्रह्मण है, जो विल्हित नामक स्थान से आकर सम्वत 1352 में गढ़वाल में आये थे।
इनके मुल्पुरुष *गुरुपति* कुकरकाटा गाँव में बसे थे, यही से कुकरेती नाम से प्रसिद्ध हुए।
*28. अन्थ्वाल*
मूलतः सारस्वत ब्राह्मण हैं। संवत 1555 में पंजाब से गढ़वाल में आगमन हुआ।
मूल पुरुष *पंडित रामदेव* अणेथ गाँव पौडी जिले में बसे, यही से इनकी जाति संज्ञा अन्थ्वाल(अणथ्वाल) हुई। इसी जाति के भै-बंध वर्तमान में श्री ज्वाल्पा धाम में भी ब्राह्मण है।
नागपुर में *ऋषि जमदग्नि* के प्रसिद गाँव जामु में भी अन्थ्वाल (अणथ्वाल) जाति के लोग रहते है।
अन्थ्वाल(अणथ्वाल) जाति मूलतः गंधार अफगानिस्तान से आई ब्राह्मणों की पुरानी जाति है। इसी दौर में ईरान अफगानिस्तान से आई अनेक ब्राह्मण जातियों में *मग* जाति के ब्राह्मण के साथ ये भी थे।
अन्थ्वाल(अणथ्वाल) नाम की एक जाति लाहौर वर्तमान पाकिस्तान में भी रहती है, जो वहा के हिन्दू मंदिरों की पूजा सम्पन्न कराते है।
*29. बेंजवाल*
जनपद रुद्रप्रयाग के अगस्त्यमुनि कस्बे से लगभग 3 किलोमीटर की खड़ी चढाई के बाद यह बेंजी गाँव आता है। बेंजी शब्द विजयजित का अपभ्रंस है जिसका आशय विजय से था।
बीजमठ महाराष्ट्र से आये मूलतः कान्यकुब्ज ब्राह्मणों का यह गाँव 11 वी सदी के आस पास बसा था, जिनके मूल पुरुष का नाम *पंडित देवसपति* था, जो *मुनि अगस्त्य* के पुराने आश्रम *पुरानादेवल* के पास *बामनकोटि* मे बसे थे।
यहीं से भगवान अगस्त्य की समस्त पूजा अधिकार इस जाति के पास सम्मिलित हुए, जिसके प्रमाण में इस जाति के पास भगवान अगस्त्य से जुडा प्राचीन अगस्त्य कवच मौजूद है।
बामनकोटि से पंडित देवसपति के वंशज *किर्तदेव* और *बामदेव* ने बेंजी गाँव को बसाया था। बेंजी के नाम पर इन्हें बिँज्वाल (बेंजवाल) कहा गया।
प्रसिद इतिहासकार एटकिन्सन ने हिमालयन गजेटियर में इस जाति का वर्णन किया है। बेंजी गाँव के नाम पर ही इनकी जाती संज्ञा बेंजवाल हुई, ये ब्राह्मण वंशज अगस्त्य ऋषि के साथ आये 64 गोत्रीय ब्राह्मणों में से एक थे। साथ ही भगवान अगस्त्य से जुड़े 24 प्रमुख मंदिरों में ये पूरब चरण के अधिकारी ब्राह्मण भी है।
*30. पुरोहित*
पुरोहितों का आगमन 1663 में जम्मू कश्मीर से हुआ था। ये जम्मू कश्मीर राजपरिवार के कुल पुरोहित थे। राजा के यहाँ पोरोहित्य कार्य करने से पुरोहित नाम से प्रसिद हुए।
इनके पहले गाँव दसोली कोठा बधाण बसे, जहा से बाद में 1750 में ये नागपुर पट्टी में भी बसे।
*31. नैथानी*
मूलरूप से कान्यकुब्ज ब्राह्मण है जो की सम्वत 1200 कन्नौज से गढ़वाल में आये।आपके मूलपुरुष *कर्णदेव, इंद्रपाल* नैथाना गाँव, गढ़वाल में आकर बसे। श्री भुवनेश्वरी सिद्धपीठ (मन्दिर) का प्रबन्ध एवं व्यवस्था नैथानी जाति के लोग देखते हैं।
*32. सेमवालः* इनके मूलपुरुष *प्रभाकर, निरंजन* सेमगांव में बसे थे। इनकी पूर्व जाति आद्य गौड़ है। ये वीरभूम से हैं जो कि 980 में सेमगांव आकर बसे थे।
*33. ड्योडीः* इनके मूलपुरुष ड्योडगांव में बसे थे।
*34. घिल्ड़ियालः* इनकी पूर्व जाति आद्यगौड़ है। ये गौड़ देश से 1100 सम्वत में आए। इनके मूलपुरुष *लुत्थमदेव, गंगदेव* घिल्डी गांव में बसे थे।
*35. जुयालः* इनकी पूर्व जाति महाराष्ट्र से है। ये कन्नौज से 1700 सम्वत में आए थे। इनके मूलपुरुष *बसुदेव, विजयानंद* जूया गांव में बसे थे।
*36. जोशीः* इनकी पूर्व जाति द्रविड़ है। ये कुमांऊ से सम्वत 1700 में आए।
*37. चंदोलाः* इनकी पूर्व जाति सारस्वत है। ये चंदोसी से सम्वत 1633 में आए। इनके मूलपुरुष *लूथराज* पंजाब से चंदोसी में बसे, वहां से गढ़वाल में बसे।
*38. धस्माणाः* इनकी पूर्व जाति गौड़ है। ये उज्जैन से 1723 में आए। इनके मूलपुरुष *हरदेव, वीरदेव, माधोदास* धस्मण गांव में बसे थे।
*39. कैंथोलाः* इनकी पूर्व जाति गुजराती भट्ट है। ये गुजरात से 1669 सम्वत में आए। इनके मूलपुरुष *राम* कैंथोली गांव में बसे थे।
*40. कोटनालाः* इनकी पूर्व जाति गौड़ है। ये बंगाल से सम्वत 1725 में आए। कोटी गांव में बसे।
*41. बडोनीः* इनकी पूर्व जाति गौड़ है। ये बंगाल से सम्वत 1500 में आए। ये बडोन गांव में बसे।
*42-कुडियालः* इनकी पूर्व जाति गौड़ है। ये सम्वत 1600 में बंगाल से आए और कूड़ी गांव में बसे।
*43-बौड़ाईः* ये गौड़ वंश के हैं और सम्वत 1500 में आए व बौधर या बौर गांव में बस गए।
*44-सिलवालः* ये द्रविड़ वंश के हैं और सम्वत 1600 में बनारस से आकर यहां सिल्ला गांव में बसे।
*45-गोदुड़ाः* इनकी पूर्व जाति भट्ट थी, ये सम्वत 1718 में दक्षिण से आकर यहां बसे, इनके मूलपुरुष *गोदू* हैं।
*46-बिंजोलाः* इनकी पूर्व जाति द्राविड़ है।
*47-मैकोटीः* ये कान्यकुब्ज वंश के हैं। सम्वत 1622 में कन्नौज से आकर *मैकोटी* गांव में बसे।
*48-कौंस्वालः* ये सम्वत 1722 में यहां आए और कंस्याली गांव में बसे।
*49-मलासीः* ये गौड़ वंश के हैं और मलासू गांव में आकर बसे।
*50-सुयालः* इनके मूलपुरुष *दजल* हैं, ये बाज नारायण सूई गांव में बसे थे।
*51-बंगवालः* ये गौड़ वंश के हैं। सम्वत 1725 में ये मध्यप्रदेश से आए। ये यहां बांगा गांव में बसे।
*52-देवराणीः* इनकी पूर्व जाति भट्ट है। ये गुजरात से सम्वत 1500 में यहां आए।
*53-मडवालः* ये द्वाराहाट कुमांऊ से सम्वत 1700 में यहां आए। इनके मूलपुरुष *राजदास* महड़ गांव में आकर बसे थे।
*54-बौखंडीः* ये महाराष्ट्र विलहित से सम्वत 1700 में यहां आए। यह अपने को *भुकुण्ड कवि* के वंशज बतलाते हैं।
*55-घणसालाः* इनकी पूर्व जाति गौड़ है। ये सम्वत 1600 में गुजरात से आए। ये मूल से मग्नदेव घणसाली गांव में बसे थे।
*56-पोखरियालः* इनकी पूर्व जाति विल्वल है। ये सम्वत 1678 में विलहित से यहां आए। इनके मूलपुरुष *गुरुसेन* पोखरी गांव में आकर बसे थे।
*57-बलोदीः* ये दविड़ वंश के हैं। ये सम्वत 1400 में दक्षिण से आए। ये यहां बलोद गांव में बसे जिससे बलोदी कहलाए।
*58-कलसीः* ये भट्ट वंश के हैं। सम्वत 1300 में गुजरात से आकर यहां बसे।
*59-सुंद्रयालः* ये सम्वत 1711 में यहां आए। ये कर्नाटक वंश के हैं। सुन्द्रोली गांव में आकर बसने से सुंद्रयाल कहलाए।
*60-डबरालः* ये महाराष्ट्र वंश के हैं। सम्वत 1433 में दक्षिण से आकर यहां बसे। इनके मूलपुरुष *रघुनाथ विश्वनाथ* डाबर गांव में बसे थे।
*61-किमोठी* ये गौड़ वंश के हैं। सम्वत 1617 में बंगाल से आकर यहां बसे। इनके मूलपुरुष *रामभजन* किमोठा गांव में बसे थे।
*62-कुठारी, कोठारीः* ये शुक्ल वंश के हैं। सम्वत 1791 में बंगाल से आकर यहां बसे। इनके मूलपुरुष *कुमारदेव* कोठार गांव में आकर बसे थे।
*63-बडोलाः* ये गौड़ वंश के हैं। सम्वत 1798 में उज्जैन से आकर यहां बसे। इनके मूलपुरुष *उज्जल* बडोली गांव में बसे थे।
*64-पांथरीः* ये सारस्वत वंश के हैं। सम्वत 1600 में जालंधर से आकर यहां बसे। इनके मूलपुरुष *अन्थू, पंथराम* पांथर गांव में बसे थे।
*65-पुरोहितः* यह खजीरी वंश के हैं। सम्वत 1813 में जम्मू से आकर यहां बसे। ये पुराहिताई करने से पुरोहित कहलाए।
*66-बिंजोलाः* ये द्रविड़ वंश के हैं।
*67-कुड़ियालः* ये गौड़ वंश के है। सम्वत 1600 में बंगाल से आए। ये कूड़ी गांव में बसने के कारण कुड़ियाल कहलाए।
*68-भट्टः* ये भट्ट वंश के हैं जो कि दक्षिण से आए।
*69-फरासीः* ये द्रविड़ वंश के हैं। सम्वत 1791 में दक्षिण से आए और फरासू गांव में बसे।
*70-गोदूडाः* ये भट्ट वंश के हैं। सम्वत 1718 में दक्षिण से आए। ये मूलपुरुष *गोदू* के नाम से गोदूडा कहलाए।
*71-भदोलाः* ये द्राविड वंश के हैं।
*72-मुसडाः* ये गौड़ वंश के हैं। बंगाल से आए। मूलपुरुष *भागदेव* मुसड़ गांव में बसे।
*73-सिल्वालः* ये द्राविड वंश के हैं। बनारस से आए और यहां सिल्ला गांव में बसे।
*74-बौड़ाईः* ये गौड़ वंश के हैं। सम्वत 1500 में आए। बौधर या बौर गांव में बसे।
*75-मैकोटीः* कान्यकुब्ज वंश के हैं। सम्वत 1622 में कन्नौज से आए। मैकोटी गांव में बसने से मैकोटी कहलाए।
*76-बदाणीः* ये कान्यकुब्ज वंश के हैं। सम्वत 1722 में कन्नौज से आए। बधाण परगने में बसने से बदाणी कहलाए।
*77-कौंसवालः* ये सम्वत 1722 में यहां आए। कंस्याली गांव में बसने से कौंसवाल कहलाए।
*78-जुगड़ाणः* ये पांडे वंश के हैं। कुमाॅऊ से सम्वत 1700 में आए और यहां जुगड़ी गांव में बसे।
*नोट :-* यह जानकारी उत्तराखंड में उपलब्ध तमाम पुस्तकों के आधार पर उत्तराखंड के कई शोधकर्ताओं के आलेखों पर आधारित है। हमारा उद्देश्य किसी की भी भावनाओं को ठेस पहुंचाने का कदापि भी नहीं है।
[9/17/2023, 8:52 PM] Jasvant Bisht Police Ji: *गढ़वाली डिक्शनरी* अवश्य पड़े प्लीज🙏🏻🕉️🕉️🕉️ लक्ष्मी
शरीर संबंधी *गढ़वाली* अनुभूति बोधक शब्द।👉
*कृपया प्रवासी पहाड़ी बच्चों को जरूर पहाड़ी सिखाऐं l*
1. *कबलाट*- भूख के कारण होने वाली बैचैनी।
2. *धगदयात*- डर के कारण मन मे उत्पन्न होने वाली चिंता।
3. *चमराट*- कटे या जले घाव पर होने वाली जलन।
4. *चचड़ाट*- तीव्र पीड़ा से होने वाली अनुभूति।
5. *चमलाट*- घाव अथवा त्वचा पर होने वाली मीठी खुजली।
6. *झमज्याट*- किसी कारणवश शरीर में सरसराहट के साथ खुजली एवम पीड़ा की मिली जुलु अनुभूति
7. *पुल्याट*- अति प्रसन्नता प्रकट की अनुभूति, जो छिपाए न छिपे
8. *फिफड़ाट*- आंतरिक दर्द या बेचैनी
9. *घबलाट*- शरीर पर किसी कीड़े के रेंगने का अहसास।
10. *ममराट*- नुकसान होने पर उत्तेजना पूर्ण कष्ट।
11. *बबराट*- तेज पीड़ा की स्थिति में कराहट।
ध्वनि संबंधी *गढ़वाली* अनुभूति बोधक शब्द।
1. *अड़ाट*- भूखे और डरे पशुओं की आवाजें।
2. *किराट*- शिशुओं के रोने की आवृत्ति।
3. *किकलाट*- जोर-जोर से बोलने पर होने वाला असहनीय शोर।
4. *खिकचाट*- व्यर्थ में हँसना।
5. *ख़बड़ाट*- वस्तुओं के गिरने या टकराने से होने वाली आवाज।
6. *गुमणाट*- धीमी और अस्पष्ट रूप से सुनाई देने वाली आवाज।
7. *घुंग्याट*- गाड़ियों की आवाज।
8. *छिबडाट*- झाड़ियों या सूखे पत्तों में चलने की आवाज।
10. *डिमड्याट*- ऊपरी मंजिल पर उछलकूद से उत्पन्न ध्वनि।
11. *लुल्याट*- जोर-जोर से रोने वाली आवाज।
12. *सुंस्याट*- नदी या गदेरों के बहने से उत्पन्न ध्वनि।
😍😍😍 *गढ़वाली crash course dictionary.*
इन शब्दों को अपनी दिनचर्या में शामिल कर सकते हैं
*Excuse me - इनै सुणो*
*what- क्या च*
*why- किले*
*really - सच माँ*
*oh no- न रे ना*
*whats up- क्या हूणु च*
*done - ह्वे गे*
*not done - नि ह्वे*
*Let him go - जान द्यो वैथे*
*i dont know- मिथै नि पता*
*hurry - जल्दी / सरपट*
*Smooth - चिफुलू*
*Lady - कज्याण*
*man - आदिम*
*Father- बुब्बा जी*
*mother - ब्वे*
*Resolved - ह्वेगे*
*Sleeping- सीणु छौं*
*run away - दौड़ी कि जा*
*stay here - यखी रै*
*now - अब्बी*
*not now- अब्बी ना*
*never- कब्बी ना*
*Wife - ब्वारी*
*Boy- छ्वारा*
*Girl- छोरि*
*hey dude- हा रे लाटा*
*hey girl- हां रै लाटी /खड्योणी*
*Come here- इनै आ*
*Go There- फुण्ड जा*
*Same to same- जन्यकि तन्नी*
*Sunlight - तड़तुड़ घाम*
*very- भौत/बन्डया*
*less - ज़र्रा*
*basket- कंडू / डलुणु/ छटणा*
*gate- दरजू/मोर-सगांड़*
*Head -मुंड*
*Face -मुक*
*cheek -गल्वड़ी*
*Finger - अंगुला*
*rat- मूसु*
*Confused- लाटु,*
*गढ़वाली कोचिंग क्लास ..*
*पहाड़ की चोटी को यहां डाण्डा कहते हैं ।*
*बर्तनों को भाण्डा कहते हैं।*
*छोटे बच्चों को नौना कहते हैं*
*बुजुर्गों को दाना कहते हैं।।*
*साथक को दगड़्या कहते हैं ।*
*लड़ने को झगड़ा कहते हैं।*
*मोटे को तगड़ा कहते हैं ।*
*खरोंच को रगड़ा कहते हैं।।*
*छोटे भाई को यहा भुल्ला कहते हैं ।*
*किचन को यहा चुल्ला कहते है।*
*ब्रिज को यहा पुल कहते है ।*
*नहर को यहा कूल कहते है।।*
*पत्नी को यहाँ जनानि कहते है*
*जी मचले तो स्याणी कहते हैं*
*बियाई भैंस को लैन्दी कहते हैं ।*
*सब कुछ है पर छैन्दी निछैन्दी कहते है ।*
*आदमी को यहाँ मैस कहते हैं ।*
*बुफैलो को यहाँ भैंस कहते है।*
*जीजा को यहा भीना कहते हैं।*
*सोने को यहाँ सीणा कहते है।*
*फाटा लगाने को जोल कहते हैं*
*गोबर को यहाँ मोल कहते हैं ।*
*चावल को यहाँ भात कहते हैं ।*
*शादी को व्यौ कहते हैं। और*
*चौड़े वर्तन को परात कहते हैं ।*
*पित्र तर्पण को शराद कहते है ।*
*नमक को हम लोण कहते हैं ।*
*जंगल को हम बण कहते हैं।*
*पहाड़ को हम ढैया कहते हैं ।*
*खेत को हम पुंगड़ा/डोखरा कहते हैं ।*
*और सीधे रास्ते को सैंण कहते हैं ।*
*सिर दर्द को हम मुंडरू कहते हैं ।*
*गिरने को हम फरकेगे/लमडन कहते हैं ।*
*चालाक को हम चकड़ेत बोलते हैं ।*
*और सीधे को लाटा बोलते हैं ।*
*तेज लड़कों को हम चंट बोलते हैं ।*
*पैजामे को हम सुलार कहते हैं*
*फीवर को हम जैर-बुखार कहते हैं*: *गढ़वाल में जातियां* *एक नजर में* गढ़वाल में जिस प्रकार से ब्राह्मण तीन भाग में विभक्त हैं, क्षत्रिय यहां दो भागों में विभक्त हैं। एक असली क्षत्रिय राजपूत और दूसरे खस राजपूत। राजपूत का अभिप्राय असली क्षत्रिय राजपूत से है। खस राजपूत जाति, राजपूत और खसिया जाति के मेल से पैदा हुई है। राजपूत जाति में उनके वंश परंपरा धार्मिक व लौकिक रिवाज अब भी विद्यमान पाए जाते हैं, हां कुछ परिवर्तन भी हुए हैं। खस राजपूतों में खसिया जाति का रिवाज पाया जाता है। विवाह संबंध भी खसिया जाति से ही होता है।
*1-परमार* (पंवार)-इनकी पूर्व जाति परमार है। ये यहां धार गुजरात से सम्वत 945 में आए। इनका गढ़ गढ़वाल राजवंश है।
*2-कुंवरः* ये पंवार वंश की उपशाखा है।
*3-रौतेलाः* पंवार वंश की उपशखा।
*4-असवालः* ये नागवंशी ठाकुर हैं। ये दिल्ली के समीप रणथम्भौर से सम्वत 945 में यहां आए। कोई इनको चह्वान कहते हैं। अश्वारोही होने से असवाल थोकदार हैं।
*5-बर्त्वाल* ये पंवार वंश के हैं। जो कि सम्वत 945 में उज्जैन/धारा से यहां आए। यहां इनका प्रथम गांव बडे़त है।
*6-मंद्रवाल*(मनुराल)* ये कत्यूरी वंश के हैं। ये सम्वत 1711 में कुमांऊ से आकर यहां बसे।
*7-रजवारः* कत्यूरी वंश के हैं। सम्वत 1711 में कुमांऊ से आए। इनको कुमांऊ के कैंत्यूरा जाति के राजाओं की संतति बताते हैं। *8-चंदः* ये सम्वत 1613 में यहां आए। ये कुमांऊ के चंद राजाओं की संतान में से हैं।
*9-रमोलाः* ये चह्वान वंश के हैं। सम्वत 254 में मैनपुरी से यहां आए। से पुरानी ठाकुरी सरदारों की संतान हैं। रमोली में रहने के कारण ये रमोला हैं।
*10-चह्वानः* ये चह्वान वंश के हैं और मैनपुरी से यहां आए। इनका गढ़ ऊप्पूगढ़ था।
*11-मियांः* ये सुकेत और जम्मू से यहां आए। ये गढ़वाल के साथ नातेदारी होने के कारण यहां आए।
*रावत संज्ञा के राजपूत*
*12-दिकोला रावतः* इनकी पूर्व जाति (वंश) मरहठा है। ये महाराष्ट्र से सम्वत 415 में यहां आए। इनका गढ़ दिकोली गांव है।
*13-गोर्ला रावतः* ये पंवार वंश के हैं। गोर्ला रावत गुजरात से सम्वत 817 में यहां आए। इनका प्रथम गांव यहां गुराड़ गांव है।
*14-रिंगवाड़ा रावतः* ये कैंत्यूरा वंश के हैं। ये कुमांऊ से सम्वत 1411 में यहां आए। इनका गढ़ रिंगवाड़ी गांव था।
*15-फर्सुड़ा रावतः* विस्तार अज्ञात।
*16-बंगारी रावतः* ये बांगर से सम्वत 1662 में आए। बांगरी का अपभ्रंस बंगारी था।
*17-घंडियाली रावतः* विस्तार अज्ञात।
*18-कफोला रावतः* विस्तार अज्ञात।
*19-बुटोला रावतः* ये तंअर वंश के हैं। ये दिल्ली से सम्वत 800 में यहां आए। इनका मूलपुरुष बूटा सिंह था।
*20-बरवाणी रावतः* ये मासीगढ़ से सम्वत 1479 में आए। इनका प्रथम गांव नैर्भणा था।
*21-झिंक्वाण रावतः* विस्तार अज्ञात।
*22-जयाड़ा रावतः* ये दिल्ली के समीप से आए। इनका गढ़ जयाड़गढ़ था।
*23-मन्यारी रावतः* ये मन्यार पट्टी में बसने के कारण मन्यारी रावत कहलाए।
*24-मैरोड़ा रावतः* विस्तार अज्ञात।
*25-गुराड़ी रावतः* विस्तार अज्ञात।
*26-कोल्ला रावतः* विस्तार अज्ञात।
*27-जवाड़ी रावतः* इनका प्रथम गांव जवाड़ी गांव है।
*28-परसारा रावतः* ये चह्वाण वंश के हैं, जो कि सम्वत 1102 में ज्वालापुर से यहां आए, इनका गढ़ परसारी गांव है।
*29-फरस्वाण रावतः* ये मथुरा के समीप से सम्वत 432 में यहां आए। इनका प्रथम गांव फरासू गांव था।
*30-जेठा रावतः* विस्तार अज्ञात।
*31-तोदड़ा रावतः* ये कुमांऊ से आए।
*32-मौंदाड़ा रावतः* ये पंवार वंश के हैं। ये सम्वत 1405 में आए, इनका प्रथम गांव मौंदाड़ी गांव था।
*33-कड़वाल रावतः* विस्तार अज्ञात।
*34-कयाड़ा रावतः* ये पंवार वंश के हैं। ये सम्वत 1453 में आए।
*35-गविणा रावतः* गवनीगढ़ इनका गढ़ था।
*36-तुलसा रावतः* विस्तार अज्ञात।
*37-लुतड़ा रावतः* ये चैहान वंश के हैं। ये सम्वत 838 में लोहा चांदपुर से यहां आए।
*बिष्ट राजपूत*
*38-बगड़वाल बिष्टः* यह लोग सिरमौर से 1519 सम्वत में आए, इनका गढ़ बगोड़ी गांव है।
*39-वेन्द्वाल बिष्टः* विस्तार अज्ञात।
*40-कफोला बिष्टः* यह यदुवंशी हैं, जो कि कम्पीला से आए। इनकी थात कफोलस्यू है।
*41-चमोला बिष्टः* ये पंवार वंशी हैं। ये उज्जैन से सम्वत 1443 में आए।
*42-इड़वाल बिष्टः* ये परिहार वंशी हैं। जो कि दिल्ली के समीप से यहां सम्वत 913 में आए। इनका गढ़ ईड़ गांव है।
*43-संगेला बिष्टः* ये गुजरात से सम्वत 1400 में आए।
*44-मुलाणी बिष्टः* ये कैंत्यूरा वंश के हैं यानि इनकी पूर्व जाति कैंत्यूरा है। ये कुमांऊ से सम्वत 1403 में आए। इनका गढ़ मुलाणी गांव है।
*45-धम्मादा बिष्टः* ये चह्वान वंश के हैं। ये दिल्ली से आए।
*46-पडियार बिष्टः* ये परिहार वंश के हैं। ये धार से 1300 सम्वत में आए।
*47-तिल्ला बिष्टः* ये चित्तौड़ से यहां आए।
*48-बछवाण बिष्टः* विस्तार अज्ञात।
*भंडारी राजपूत-*
*49-काला भंडारीः* विस्तार अज्ञात।
*50-तेली भंडारीः* विस्तार अज्ञात।
*51-सोन भंडारीः* विस्तार अज्ञात।
*52-पुंडीर भंडारीः* विस्तार अज्ञात।
*नेगी राजपूत जाति*
*53-खत्री नेगीः* विस्तार अज्ञात।
*54-पुंडीर नेगीः* पुंडीर नेगी का पूर्व जाति (वंश) पुण्डीर है। ये सम्वत 1722 में सहारनपुर से आकर यहां बसे। *पृथ्वीराजरासो* में ये दिल्ली के समीप के होने बताए गए हैं।
*55-बगलाणा नेगीः* ये बागल से सम्वत 1703 में यहां आए। इनका मुख्य गांव शूला है।
*56-मोंणा नेगी* विस्तार अज्ञात।
*57-खुंटी नेगीः* इनकी पूर्व (वंश) मियां है। ये सम्वत 1113 में नगरकोट-कांगड़ा से आकर यहां बसे। यहां इनका प्रथम गांव यानि की गढ़ खूँटी गांव है।
*58-सिपाही नेगीः* इनकी पूर्व जाति (वंश) भी मियां है। ये सम्वत 1743 में यहां आए।
*59-संगेला नेगीः* इनकी पूर्व जाति (वंश) जाट राजपूत है। ये सम्वत 1769 में सहारनपुर से आकर यहां बसे।
*60-खडखोला नेगीः* इनकी पूर्व जाति (वंश) कैंत्यूरा है। ये कुमांऊ से सम्वत 1169 में आए। ये खडखोली गांव में कलवाड़ी के थोकदार रहे।
*61-सौंद नेगीः* इनकी पूर्व जाति (वंश) राणा है। ये कैलाखुरी से आए और सौंदाड़ी गांव में बसे।
*62-भोटिया नेगीः* इनकी पूर्व जाति (वंश) हूण राजपूत है। ये हूण देश से यहां आकर बसे।
*63-पटूड़ा नेगीः* ये अन्यत्र से यहां आकर पटूड़ा गांव में बसे।
*64-महरा (म्वारा), महर नेगीः* इनकी पूर्व जाति (वंश) गुर्जर राजपूत है। ये लंढौरा से आकर यहां बसे।
*65-बागड़ी या बागुड़ीः* ये सम्वत 1417 में मायापुर से आकर बागड़ में बसे।
*66-सिंग नेगीः* इनकी पूर्व जाति (वंश) बेदी है। ये सम्वत 1700 में पंजाब से आकर यहां बसे।
*67-जम्बाल नेगीः* इनकी पूर्व जाति (वंश) मियां है। ये जम्मू से आकर यहां बसे।
*68-रिखोला नेगीः* रिखल्या राजपूत *डोटी नेपाल* के *रीखली गर्खा* से आए।
*69-हाथी नेगीः* विस्तार अज्ञात।
*70-जरदारी नेगी* विस्तार अज्ञात।
*71-पडियार नेगीः* इनकी पूर्व जाति (वंश) *परिहार* है। ये सम्वत 1860 में दिल्ली के समीप से आए।
*72-लोहवान नेगीः* इनकी पूर्व जाति (वंश) चह्वाण है। ये सम्वत 1035 में दिल्ली से आकर लोहबा परगने में बसे।
*73-नेकी नेगीः* विस्तार अज्ञात।
*74-गगवाड़ी नेगीः* ये सम्वत 1476 में मथुरा के समीप से आकर गगवाड़ी गांव में बसे।
*75-चोपड़िया नेगीः* ये सम्वत 1442 में हस्तिनापुर से आकर चोपड़ा गांव में बसे।
*76-नीलकंठी नेगीः* विस्तार अज्ञात।
*77-सरवाल नेगीः* ये सम्वत 1600 में पंजाब से आकर यहां बसे।
*गुसाईं राजपूत-*
*78-कंडारी गुसाईंः* ये मथुरा के समीप से सम्वत 428 में यहां आए। कंडारीगढ़ के ठाकुरी राजाओं के वंश की जाति है।
*79-घुरदुड़ा गुसाईंः* विस्तार अज्ञात।
*80-पटवाल गुसाईंः* ये प्रयाग से सम्वत 1212 में यहां आए। पाटा गांव में बसने से इनके नाम से पट्टी नाम पड़ा।
*81-रौथाण गुसाईंः* ये सम्वत 945 में रणथंभौर दिल्ली के समीप से आए।
*82-खाती गुसाईः* खातस्यूं इनकी थात की पट्टी है।
*83-सजवाण ठाकुरः* ये मरहटा वंश के हैं और महाराष्ट्र से आए हैं। ये प्राचीन ठाकुरी राजाओं की संतान हैं।
*84-मखलोगा ठाकुरः* ये पुंडीर वंश के हैं। सम्वत 1403 में ये मायापर से आए। इनका प्रथम गांव मखलोगी है।
*85-तड्याल ठाकुरः* इनका प्रथम गांव तड़ी गांव है।
*86-पयाल ठाकुरः* ये कुरुवंशी वंशज हैं। ये हस्तिनापुर से यहां आए। इनका प्रथम गांव पयाल गांव है।
*87-राणाः* ये सूर्यवंशी वंशज हैं। सम्वत 1405 में चितौड़ से गढ़वाल में आए।
*88-राणा राजपूत* इनका वंश नागवंशी है। ये हुणदेश से यहां आए। ये प्राचीन निवासियों में से हैं।
*89-कठैतः* ये कटोच वंश के हैं। ये कांगड़ा से यहां आए।
*90-वेदी खत्रीः* ये खत्री वंश के हैं और सम्वत 1700 में नेपाल से यहां आए।
*91-पजाईः* ये कुमांऊ से यहां आए।
*92-रांगड़़ः* ये रांगढ़ वंश के हैं और सहारनुपर से यहां आए।
*93-कैंत्यूराः(कैतुरा)* ये कैंत्यूरा वंश के हैं और कुमांऊ कत्यूर से यहां आए।
*94-नकोटीः* ये नगरकोटी वंश के हैं। ये नगरकोट से आए। नकोट गांव में बसने के कारण नकोटी कहलाए।
*95-कमीणः* विस्तार अज्ञात।
*96-कुरमणीः* ये कुर्म मूलपुरुष के नाम से कुरमणी कहलाए।
*97-धमादाः* ये पुराने गढ़ाधीश की संतान हैं।
*98-कंडियालः* इनका प्रथम गांव कांडी गांव है।
*99-बैडोगाः* इनका प्रथम गांव बैडोगी है।
*100-मुखमालः* इनका प्रथम गांव मुखवा या मुखेम गांव है।
*गढ़वाल की ब्राहमण जातियां*
गढ़वाल में ब्राह्मण जातियां मूल रूप से तीन हिस्सो में बांटी गई है *1-सरोला* *2-गंगाड़ी* *3-नाना* सरोला और गंगाड़ी 8 वीं और 9वीं शताब्दी के दौरान मैदानी भाग से उत्तराखंड आए थे। पंवार
शासक के राजपुरोहित के रूप में सरोला आये थे। गढ़वाल में आने के बाद सरोला और गंगाड़ी लोगों ने नाना गोत्र के ब्राह्मणों से शादी की। सरोला ब्राह्मण के द्वारा बनाया गया भोजन सब लोग खा लेते है परंतु गंगाड़ी जाति का अधिकार केवल अपने सगे-सम्बन्धियों तक ही सीमित है।
*01.नौटियाल*
आज से लगभग 700 साल पहले टिहरी से आकर तली चांदपुर में नौटी गाव में आकर बस गए !
आप के आदि पुरष है *नीलकंठ और देविदया* जो गौर ब्राहमण है।।
नौटियाल चांदपुर गढ़ी के राजा कनकपाल के साथ सम्वत 945 में *धर मालवा* से आकर यहाँ बसे, इनके बसने के स्थान का नाम *गोदी* था जो बाद में *नौटी* नाम में परिवर्तित हो गया और यही से ये जाति *नौटियाल* नाम से प्रसिद्ध हुई।
*2. डोभाल*
गढ़वाली ब्राह्मणों की प्रमुख शाखा गंगाडी ब्राह्मणों में डोभाल जाति सम्वत 945 में संतोली कर्नाटक से आई मूलतः कान्यकुब्ज ब्राह्मण जाति थी।
मूल पुरुष *कर्णजीत* डोभा गाँव में बसने से *डोभाल* कहलाये।
गढ़वाल के पुराने राजपरिवार में भी इस जाति के लोग ऊँचे पदों पर भी रहे हैं।
ये *चौथों* की जातीय सरोलाओ की *बाराथोकी* जातियों के सम्कक्ष थी जो नवी-दसवी सदी के आसपास आई और *चोथोकी* कहलाई।
*3. रतूड़ी*
सरोला जाति की प्रमुख जाति रतूडी मूलत अद्यागौड़ ब्राह्मण है, जो *गौड़ देश* से सम्वत 980 में आये थे।
इनके मूलपुरुष *सत्यानन्द* और *राजबल* सीला पट्टी के चांदपुर के समीप रतुडा गाँव मैं बसे थे और यही से ये रतूडी नाम से प्रसिद हुए।
इस जाति के लोगो का भी गढ़वाल नरेशों पर दबदबा लम्बे समय तक बरकरार रहा था।
गढ़वाल का सर्व प्रथम प्रमाणिक इतिहास लिखने का श्रेय इसी जाति के युग पुरुष टिहरी राजदरबार के वजीर *पंडित हरिकृष्ण रतूडी* को जाता है।
रतुडा में माँ भगवती चण्डिका का प्रसिद्ध *थान* भी है।
*4. गैरोलाः*
गैरोला लोगों का पैतृक गाव चांदपुर तैल पट्टी है।
इनके आदि पुरुष *जयानन्द विजयानन्द* हैं। ये 972 में गैरोली गांव में बसे थे। इनकी पूर्व जाति *आद्यगौड़* है।
*5. डिमरी*
आप दक्षिण से आकर पट्टी तली चांदपुर *दिमार(डिम्मर)* गाव में आकर बस गए !
आप द्रविड़ ब्राह्मण है।।
*6. थपलियाल*
आप 1100 साल पहले पट्टी *सीली चांदपुर के ग्राम थापली* में आकर बस गए।
आप के आदि पुरुष *जैचानंद माईचंद* और *जैपाल* हैं, जो गौर ब्राह्मण हैं।।
*यह गढ़वाली ब्राह्मणों की बेहद खास जाति है, जिनकी आराध्य माँ ज्वाल्पा है।*
इस जाति के विद्वानों की *धाक* चांदपुर गढ़ी, देवलगढ़ , श्रीनगर राजदरवार, और टिहरी राजदरबार में बराबर बनी रही थी।
थपलियाल अद्यागौड़ है जो गौड देश से सम्वत 980 में *थापली* गाँव में बसे और इसी नाम से उनकी जाति संज्ञा *थपलियाल* हुई।
ये जाति भी गढ़वाल के *मूल बाराथोकी सरोलाओँ* में से एक है।
नागपुर में *थाला गाँव* थपलियाल जाति का प्रसिद गाँव है, जहाँ के विद्वान आयुर्वेद के बडे सिद्ध ब्राह्मण थे।
*7. बिजल्वाण*
आपके आदि पुरूष है *बीजोध् बिज्जू*। इन्ही के नाम पर ही इनकी जाति संज्ञा *बिज्ल्वाण* हुई।
गढ़वाल की सरोला जाति मैं बिज्ल्वाण एक प्रमुख जाति संज्ञा है। इनकी पूर्व जाति गौड़ थी ,जो संवत 1100 के आसपास गढ़वाल के चांदपुर परगने में आई थी, और इस जाति का मूल स्थान *वीरभूमि बंगाल* है।।
*8. लखेड़ा*
लगभग 1000 साल पहले कोलकत्ता के *वीरभूमि* से आकर उत्तराखंड में बसे।
उत्तराखंड के लगभग 70 गांवों में फैले लखेड़ा लोग एक ही पुरूष श्रद्धेय *भानुवीर नारद जी* की संतानें हैं।
ये सरोला ब्राह्मण है।।
*9. बहुगुणा*
गढ़वाली ब्राह्मणों की प्रमुख शाखा गंगाडी ब्राह्मणों में बहुगुणा जाति सम्वत 980 में *गौड़ बंगाल* से आई मूलतः *अद्यागौड़* जाति थी।
*10. कोठियाल*
सरोला जाति की यह एक प्रमुख शाखा है, जो चांदपुर में *कोटी* गाँव में आकर बसी थी और यहाँ बसने से ही *कोठियाल* जाति नाम से प्रसिद हुई।
इनकी मूल जाती *गौड़* है।
चांदपुर गढ़ी के राजपरिवार द्वारा बाद में कोटी को सरोला मान्यता प्रदान की गयी थी। इस जाति के अधिकार क्षेत्र में बद्रीनाथ मंदिर की पूजा व्यवस्था में हक हकूक भी शामिल है।
*11. उनियाल*
839 इ. पू. *जयानंद* और *विजयानंद* नाम के दो चचेरे भाई (ओझा और झा) दरभंगा (मगध-बिहार) से श्रीनगर, गढ़वाल में आये। वो *मैथली ब्राह्मण* थे।
प्रसिद्ध कवि *विद्यापति* और राजनीतिज्ञ, अर्थशास्त्री *चाणक्य* *(कौटिल्य)* उनके पूर्वजों में से एक थे।
इन्हें पान्डित्य जागिरैं दी गई थी, इसलिए *ओझा* और *झा* (दो अलग गोत्र *कश्यप* और *भारद्वाज*) की एक जाति *ओनियाल* बनी, जो बाद में *उनियाल* बन बनकर प्रसिद्ध हुई।
माता भगवती सभी उनियाल, ओजा, झा और द्रविड़ ब्राह्मणों की कुलदेवी हैं।
*12. पैनुली(पैन्यूली)*
पैनुली (पैन्यूली) मूलतः गौड़ ब्रह्मण है।
दक्षिण भारत से 1207 में मूल पुरुष *ब्रह्मनाथ* द्वारा पन्याला गाँव रमोली मे बसने से इस जाति का नाम पैनुली (पैन्यूली) प्रसिद हुआ।
इस जति के कई लोग श्रीनगर राजदरबार और टिहरी राजदरवार में उच्च पदों पर आसीन हुए।
इस जाति के *श्री परिपूर्णा नन्द पैन्यूली* 1971-1976 में टिहरी गढ़वाल के सांसद भी रहे है।
*13. ढौंडियाल*
गढ़वाल नरेश *राजा महिपत शाह* द्वारा 14 और 15 वी सदी में *चौथोकी वर्ग* में वृद्धि करते हुए 32 अन्य जातियों को इस वर्ग में सामिल किया था जिनमे *ढौंडियाल* प्रमुख जाति थी।
इस जाति के मूल पुरुष गौड़ जाति के ब्राह्मण थे जो राजपुताना से सम्वत 1713 में गढ़वाल आये थे।
मूल पुरुष *पंडित रूपचंद* द्वारा *ढोण्ड* गाँव बसाया गया था, जिस कारण इन्हें *ढौंडियाल* कहा गया।
*14. नौडियाल*
मूलतः गढ़वाली गंगाडी ब्रह्मण हैं, जिनकी पूर्व जाति संज्ञा गौड़ थी।
मूल स्थान *भृंग चिरंग* से सम्वत 1543 में आये पंडित *शशिधर* द्वारा *नोडी* गाँव बसाया गया था।
नोडी गाँव के नाम पर ही इस जाति को नौडियाल कहा गया।
*15. पोखरियाल*
मूलतः *गौड़ ब्रह्मण* है इनकी पूर्व जाति सज्ञा *विल्हित* थी जो संवत 1678 में *विलहित* से आने के कारण हुई।
इस जाति के मूल पुरुष जो पहले विलहित और बाद में *पोखरी गाँव जिला पौडी गढ़वाल* में बसने से पोखरियाल प्रसिद हुए।
इस जाति नाम की कुछ ब्राह्मण जातियाँ हिन्दू राष्ट्र नेपाल में भी है, जो प्रसिद शिव मंदिर पशुपति नाथ में पूजाधिकारी भी है।
ये जाति गढ़वाल में पौडी के अतिरिक्त चमोली में भी बसी हुई है , *टिहरी में पोखरियाल जाति नाम से राजपूत जाति भी है, जो सम्भवतः किसी पुराने गढ़ के कारण पड़ी हुई हो।*
*16. सकलानी*
गढ़वाल नरेशों द्वारा मुआफी के हकदार *भारद्वाज कान्यकुब्ज ब्राह्मणों* की यह शाखा सम्वत 1700 के आसपास अवध से सकलाना गाँव में बसी।
इनके मूल पुरुष *नाग देव* ने सकलाना गाँव बसाया था, बाद में इस जाति के नाम पर इस पट्टी का नाम *सकलाना पट्टी* पड़ा।
राज पुरोहितो की यह जाति अपने स्वाभिमानी स्वभाव के कारण राजा द्वारा विशेष सुविधाओ से आरक्षित किये गये थे और जागीरदारी भी प्रदान की गयी।
*17. चमोली*
मूल रूप से *द्रविड़ ब्राह्मण* है जो रामनाथ विल्हित से 924 में आकर गढ़वाल के चांदपुर परगने के चमोली गाँव में बसे।
सरोलाओ की एक प्रमुख जाति जो मूल रूप से चमोली गाँव में बसने से अस्तित्व में आई थी जिसे *पंडित धरणी धर, हरमी, विरमी* ने बसाया था और गाँव के नाम पर ही ये जाति चमोली कहलाई।
ये जाति सरोलाओ के सुप्रसिद्ध *बारहथोकी* में से एक प्रमुख है जो नंदा देवी राजजात में प्रमुख भूमिका निभाती है।
*18. काला*
गढ़वाल की ये वो प्रसिद जाति है, जिसने आजादी के बाद सबसे अच्छी प्रगति की है।
इस जाति को अभी तक सबसे अधिक प्रथम श्रेणी के अधिकार मोजूद है।
सुमाडी इस जाति का सबसे अधिक प्रसिद गाँव है। जहा के *पन्थ्या दादा* एक महान इतिहास पुरुष हुए है।
*19. पांथरी*
मूलतः सारस्वत ब्राह्मण हैं, जो सम्वत 1543 में जालन्धर से आकर गढ़वाल के पंथर गाँव में बसे और *पांथरी* जाति नाम से प्रसिद हुए।
इस जाति के मूल पुरुष *अन्थु पन्थराम* ने ही पंथर गाँव बसाया था।
*20. खंडूरी(खंडूड़ी)*
सरोलाओ की *बारह थोकी जातियों* में से एक खंडूरी मूलतः *गौड़ ब्राह्मण* है, जिनका आगमन सम्वत 945 में *वीरभूमि बंगाल* से हुआ।
इनके मूल पुरुष *सारन्धर* एवं *महेश्वर* खंडूड़ी गाँव में बसे और खंडूड़ी जाति नाम से प्रसिद हुए।
इस जाति के अनेक वंसज गढ़वाल राज्य में *दीवान एवं कानूनगो* के पदों पर भी रहे।
बाद में राजा द्वारा इन्हें *थोकदारी* दे कर गढ़वाल के विभिन्न गाँवों को इन्हे जागीर में दे दिया था।
*21. सती*
गढ़वाल की सरोला जाति मे से एक सती , गुजरात से आई ब्राह्मण जाति है, जो चांदपुर गढी के शासको के निमंत्रण पर चांदपुर और कपीरी पट्टी मैं बसी थी।
इस जाति की एक शाखा नौनी(नवानी) भी है।
इस जाति नाम के ब्राह्मण गढ़वाल के कई कोनो में फैले है, यहाँ तक कि इस जात के कुछ ब्राह्मण कुमाऊँ में भी है।
*22. कंडवाल*
मूलतः सरोला जाति है, जो कांडा गाँव में बसने से कंडवाल कहलाई है।
गढ़वाल के इतिहास में क्रमांक 19 से 26 तक की कुल आठ जातियाँ *सरोला सूची* मे शामिल की गयी है , जिनमे कंडवाल जाति भी है।
कंडवाल जाति मूलतः कुमाऊनी जाति है, जो कांडई नामक गाँव से यहाँ चांदपुर में सबसे पहले आकर बसी थी, जिनके मूलपुरुष का नाम *आग्मानंद* था। नागपुर की एक प्रसिद जाति *कांडपाल* भी इससे अपना सम्बन्ध बताती है, जिनके अनुसार (कांडपाल) का मूल गाँव *कांडई* आज भी *अल्मोडा* में है, जहाँ के ये मूलतः *कान्यकुब्ज (भारद्वाज गोत्री) कांडपाल वंशज* है।
यही कुमाऊँ से सन 1343 में *श्रीकंठ* नाम के विद्वान से *निगमानंद* और *आगमानंद* ने कांडपाल वंश को यहाँ बसाया था, जिनमे से एक भाई चांदपुर में बस गया और राजा द्वारा इन्हें ही सरोला मान्यता प्रदान कर दी गयी और चांदपुर में ये लोग *कंडवाल* नाम से प्रसिद्ध हुए।
इसी जाति के दूसरे स्कन्ध में से *निगमानंद* ने 1400 में कांडई गाँव बसाया था, कांडई में बसने से इन्हें *कंडयाल* भी कहा गया, जो बाद मैं अपने मूल जाति नाम *कांडपाल* से प्रसिद हुआ।
*23. ममगाईं*
मूलतः गौड़ ब्रह्मण है जो उज्जैन से आकर मामा के गाँव में बसने से *ममगाईं* कहलाये थे।
ये जाति मूलतः पौडी जिले की है लेकिन टिहरी और उत्तरकाशी और रुद्रप्रयाग जिले में भी इस जाति के गाँव बसे है।
महाराष्ट्र मूल के होने से वहां भी इस जाति के कुछ लोग रहते है। नागपुर में भी इस जाति के कुछ परिवार बसे है, जिनके रिश्ते नाते टिहरी और श्रीनगर के ब्राह्मणों से होते है।
*24. भट्ट*
भट्ट सामन्यता एक विशेष जाति संज्ञा है , जिसका आशय प्रसिद्धि और विद्वता से है।
सामान्यतः ये एक प्रकार की उपाधि थी जो राजाओ द्वारा प्रदत्त होती थी। गढ़वाल की अन्य जाति सज्ञाओ के अनुरूप ये उपाधि भी बाद में जातिनाम में बदल गयी, कुछ लोग इनका मूल *भट्ट* ही मानते है।
गढ़वाल में भट्ट जाति सबसे अधिक प्रसार वाली जाति संज्ञा है। ये सभी स्वयं को *दक्षिण वंशी* मानते है।
कालांतर में इनमे से अनेक ने अपने नए जाति नाम भी रखे है, *भट्ट ही एक मात्र जाति है जो गढ़वाल में सरोला सूची , गागाड़ी सूची और नागपुरी सूची में शामिल की गयी है।*
*25. पन्त*
भारद्वाज गोत्रीय ब्राह्मण है, जिनके मूल पुरुष *जयदेव पन्त* का कोकण महाराष्ट्र से 10 वी सदी में चंद राजाओ के साथ कुमाऊँ में आगमन हुआ।
इनके वंसज *शर्मा श्रीनाथ नाथू* एवं *भावदास* के नाम भी *चार थोको* मैं विभाजित हुए, ये ही बाद में मूल कुमाउनी ब्राह्मण जाति *पन्त* हुई।
बाद में अल्मोडा, उप्रडा, कुंलता, बरसायत, बड़ाउ, म्लेरा में बसे शर्मा पन्त, श्रीनाथ पन्त, परासरी पन्त, और हटवाल पन्त, प्रमुख *पन्त* बने।
ये सभी कुमाउनी पन्त थे, बाद में इसी जाति के कुछ परिवार गढ़वाल के विभिन्न इलाको में बसे, विद्वता और ज्योतिष के क्षेत्र उलेखनीय कार्यो ने यहाँ भी इन्हें उच्च स्तर तक पहुचा दिया।
पन्त जाति का नागपुर में प्रसिद गाँव *कुणजेटी* है। ये नागपुर के 24 मठ मंदिरों में आचार्य वरण के अधिकारी है।
*26. बर्थवाल(बड़थ्वाल)*
मूलतः सारस्वत ब्राह्मण है, जो संवत 1543 में गुजरात से आकर गढ़वाल में बसे।
इस जाति के मूल पुरुष *पंडित सूर्य कमल मुरारी*, बेड़ेथ नामक गाँव में बसे और बाद में जिनके वंसज बर्थवाल(बड़थ्वाल) जाति नाम से प्रसिद्ध हुए।
*27. कुकरेती*
मूलतः द्रविड़ ब्रह्मण है, जो विल्हित नामक स्थान से आकर सम्वत 1352 में गढ़वाल में आये थे।
इनके मुल्पुरुष *गुरुपति* कुकरकाटा गाँव में बसे थे, यही से कुकरेती नाम से प्रसिद्ध हुए।
*28. अन्थ्वाल*
मूलतः सारस्वत ब्राह्मण हैं। संवत 1555 में पंजाब से गढ़वाल में आगमन हुआ।
मूल पुरुष *पंडित रामदेव* अणेथ गाँव पौडी जिले में बसे, यही से इनकी जाति संज्ञा अन्थ्वाल(अणथ्वाल) हुई। इसी जाति के भै-बंध वर्तमान में श्री ज्वाल्पा धाम में भी ब्राह्मण है।
नागपुर में *ऋषि जमदग्नि* के प्रसिद गाँव जामु में भी अन्थ्वाल (अणथ्वाल) जाति के लोग रहते है।
अन्थ्वाल(अणथ्वाल) जाति मूलतः गंधार अफगानिस्तान से आई ब्राह्मणों की पुरानी जाति है। इसी दौर में ईरान अफगानिस्तान से आई अनेक ब्राह्मण जातियों में *मग* जाति के ब्राह्मण के साथ ये भी थे।
अन्थ्वाल(अणथ्वाल) नाम की एक जाति लाहौर वर्तमान पाकिस्तान में भी रहती है, जो वहा के हिन्दू मंदिरों की पूजा सम्पन्न कराते है।
*29. बेंजवाल*
जनपद रुद्रप्रयाग के अगस्त्यमुनि कस्बे से लगभग 3 किलोमीटर की खड़ी चढाई के बाद यह बेंजी गाँव आता है। बेंजी शब्द विजयजित का अपभ्रंस है जिसका आशय विजय से था।
बीजमठ महाराष्ट्र से आये मूलतः कान्यकुब्ज ब्राह्मणों का यह गाँव 11 वी सदी के आस पास बसा था, जिनके मूल पुरुष का नाम *पंडित देवसपति* था, जो *मुनि अगस्त्य* के पुराने आश्रम *पुरानादेवल* के पास *बामनकोटि* मे बसे थे।
यहीं से भगवान अगस्त्य की समस्त पूजा अधिकार इस जाति के पास सम्मिलित हुए, जिसके प्रमाण में इस जाति के पास भगवान अगस्त्य से जुडा प्राचीन अगस्त्य कवच मौजूद है।
बामनकोटि से पंडित देवसपति के वंशज *किर्तदेव* और *बामदेव* ने बेंजी गाँव को बसाया था। बेंजी के नाम पर इन्हें बिँज्वाल (बेंजवाल) कहा गया।
प्रसिद इतिहासकार एटकिन्सन ने हिमालयन गजेटियर में इस जाति का वर्णन किया है। बेंजी गाँव के नाम पर ही इनकी जाती संज्ञा बेंजवाल हुई, ये ब्राह्मण वंशज अगस्त्य ऋषि के साथ आये 64 गोत्रीय ब्राह्मणों में से एक थे। साथ ही भगवान अगस्त्य से जुड़े 24 प्रमुख मंदिरों में ये पूरब चरण के अधिकारी ब्राह्मण भी है।
*30. पुरोहित*
पुरोहितों का आगमन 1663 में जम्मू कश्मीर से हुआ था। ये जम्मू कश्मीर राजपरिवार के कुल पुरोहित थे। राजा के यहाँ पोरोहित्य कार्य करने से पुरोहित नाम से प्रसिद हुए।
इनके पहले गाँव दसोली कोठा बधाण बसे, जहा से बाद में 1750 में ये नागपुर पट्टी में भी बसे।
*31. नैथानी*
मूलरूप से कान्यकुब्ज ब्राह्मण है जो की सम्वत 1200 कन्नौज से गढ़वाल में आये।आपके मूलपुरुष *कर्णदेव, इंद्रपाल* नैथाना गाँव, गढ़वाल में आकर बसे। श्री भुवनेश्वरी सिद्धपीठ (मन्दिर) का प्रबन्ध एवं व्यवस्था नैथानी जाति के लोग देखते हैं।
*32. सेमवालः* इनके मूलपुरुष *प्रभाकर, निरंजन* सेमगांव में बसे थे। इनकी पूर्व जाति आद्य गौड़ है। ये वीरभूम से हैं जो कि 980 में सेमगांव आकर बसे थे।
*33. ड्योडीः* इनके मूलपुरुष ड्योडगांव में बसे थे।
*34. घिल्ड़ियालः* इनकी पूर्व जाति आद्यगौड़ है। ये गौड़ देश से 1100 सम्वत में आए। इनके मूलपुरुष *लुत्थमदेव, गंगदेव* घिल्डी गांव में बसे थे।
*35. जुयालः* इनकी पूर्व जाति महाराष्ट्र से है। ये कन्नौज से 1700 सम्वत में आए थे। इनके मूलपुरुष *बसुदेव, विजयानंद* जूया गांव में बसे थे।
*36. जोशीः* इनकी पूर्व जाति द्रविड़ है। ये कुमांऊ से सम्वत 1700 में आए।
*37. चंदोलाः* इनकी पूर्व जाति सारस्वत है। ये चंदोसी से सम्वत 1633 में आए। इनके मूलपुरुष *लूथराज* पंजाब से चंदोसी में बसे, वहां से गढ़वाल में बसे।
*38. धस्माणाः* इनकी पूर्व जाति गौड़ है। ये उज्जैन से 1723 में आए। इनके मूलपुरुष *हरदेव, वीरदेव, माधोदास* धस्मण गांव में बसे थे।
*39. कैंथोलाः* इनकी पूर्व जाति गुजराती भट्ट है। ये गुजरात से 1669 सम्वत में आए। इनके मूलपुरुष *राम* कैंथोली गांव में बसे थे।
*40. कोटनालाः* इनकी पूर्व जाति गौड़ है। ये बंगाल से सम्वत 1725 में आए। कोटी गांव में बसे।
*41. बडोनीः* इनकी पूर्व जाति गौड़ है। ये बंगाल से सम्वत 1500 में आए। ये बडोन गांव में बसे।
*42-कुडियालः* इनकी पूर्व जाति गौड़ है। ये सम्वत 1600 में बंगाल से आए और कूड़ी गांव में बसे।
*43-बौड़ाईः* ये गौड़ वंश के हैं और सम्वत 1500 में आए व बौधर या बौर गांव में बस गए।
*44-सिलवालः* ये द्रविड़ वंश के हैं और सम्वत 1600 में बनारस से आकर यहां सिल्ला गांव में बसे।
*45-गोदुड़ाः* इनकी पूर्व जाति भट्ट थी, ये सम्वत 1718 में दक्षिण से आकर यहां बसे, इनके मूलपुरुष *गोदू* हैं।
*46-बिंजोलाः* इनकी पूर्व जाति द्राविड़ है।
*47-मैकोटीः* ये कान्यकुब्ज वंश के हैं। सम्वत 1622 में कन्नौज से आकर *मैकोटी* गांव में बसे।
*48-कौंस्वालः* ये सम्वत 1722 में यहां आए और कंस्याली गांव में बसे।
*49-मलासीः* ये गौड़ वंश के हैं और मलासू गांव में आकर बसे।
*50-सुयालः* इनके मूलपुरुष *दजल* हैं, ये बाज नारायण सूई गांव में बसे थे।
*51-बंगवालः* ये गौड़ वंश के हैं। सम्वत 1725 में ये मध्यप्रदेश से आए। ये यहां बांगा गांव में बसे।
*52-देवराणीः* इनकी पूर्व जाति भट्ट है। ये गुजरात से सम्वत 1500 में यहां आए।
*53-मडवालः* ये द्वाराहाट कुमांऊ से सम्वत 1700 में यहां आए। इनके मूलपुरुष *राजदास* महड़ गांव में आकर बसे थे।
*54-बौखंडीः* ये महाराष्ट्र विलहित से सम्वत 1700 में यहां आए। यह अपने को *भुकुण्ड कवि* के वंशज बतलाते हैं।
*55-घणसालाः* इनकी पूर्व जाति गौड़ है। ये सम्वत 1600 में गुजरात से आए। ये मूल से मग्नदेव घणसाली गांव में बसे थे।
*56-पोखरियालः* इनकी पूर्व जाति विल्वल है। ये सम्वत 1678 में विलहित से यहां आए। इनके मूलपुरुष *गुरुसेन* पोखरी गांव में आकर बसे थे।
*57-बलोदीः* ये दविड़ वंश के हैं। ये सम्वत 1400 में दक्षिण से आए। ये यहां बलोद गांव में बसे जिससे बलोदी कहलाए।
*58-कलसीः* ये भट्ट वंश के हैं। सम्वत 1300 में गुजरात से आकर यहां बसे।
*59-सुंद्रयालः* ये सम्वत 1711 में यहां आए। ये कर्नाटक वंश के हैं। सुन्द्रोली गांव में आकर बसने से सुंद्रयाल कहलाए।
*60-डबरालः* ये महाराष्ट्र वंश के हैं। सम्वत 1433 में दक्षिण से आकर यहां बसे। इनके मूलपुरुष *रघुनाथ विश्वनाथ* डाबर गांव में बसे थे।
*61-किमोठी* ये गौड़ वंश के हैं। सम्वत 1617 में बंगाल से आकर यहां बसे। इनके मूलपुरुष *रामभजन* किमोठा गांव में बसे थे।
*62-कुठारी, कोठारीः* ये शुक्ल वंश के हैं। सम्वत 1791 में बंगाल से आकर यहां बसे। इनके मूलपुरुष *कुमारदेव* कोठार गांव में आकर बसे थे।
*63-बडोलाः* ये गौड़ वंश के हैं। सम्वत 1798 में उज्जैन से आकर यहां बसे। इनके मूलपुरुष *उज्जल* बडोली गांव में बसे थे।
*64-पांथरीः* ये सारस्वत वंश के हैं। सम्वत 1600 में जालंधर से आकर यहां बसे। इनके मूलपुरुष *अन्थू, पंथराम* पांथर गांव में बसे थे।
*65-पुरोहितः* यह खजीरी वंश के हैं। सम्वत 1813 में जम्मू से आकर यहां बसे। ये पुराहिताई करने से पुरोहित कहलाए।
*66-बिंजोलाः* ये द्रविड़ वंश के हैं।
*67-कुड़ियालः* ये गौड़ वंश के है। सम्वत 1600 में बंगाल से आए। ये कूड़ी गांव में बसने के कारण कुड़ियाल कहलाए।
*68-भट्टः* ये भट्ट वंश के हैं जो कि दक्षिण से आए।
*69-फरासीः* ये द्रविड़ वंश के हैं। सम्वत 1791 में दक्षिण से आए और फरासू गांव में बसे।
*70-गोदूडाः* ये भट्ट वंश के हैं। सम्वत 1718 में दक्षिण से आए। ये मूलपुरुष *गोदू* के नाम से गोदूडा कहलाए।
*71-भदोलाः* ये द्राविड वंश के हैं।
*72-मुसडाः* ये गौड़ वंश के हैं। बंगाल से आए। मूलपुरुष *भागदेव* मुसड़ गांव में बसे।
*73-सिल्वालः* ये द्राविड वंश के हैं। बनारस से आए और यहां सिल्ला गांव में बसे।
*74-बौड़ाईः* ये गौड़ वंश के हैं। सम्वत 1500 में आए। बौधर या बौर गांव में बसे।
*75-मैकोटीः* कान्यकुब्ज वंश के हैं। सम्वत 1622 में कन्नौज से आए। मैकोटी गांव में बसने से मैकोटी कहलाए।
*76-बदाणीः* ये कान्यकुब्ज वंश के हैं। सम्वत 1722 में कन्नौज से आए। बधाण परगने में बसने से बदाणी कहलाए।
*77-कौंसवालः* ये सम्वत 1722 में यहां आए। कंस्याली गांव में बसने से कौंसवाल कहलाए।
*78-जुगड़ाणः* ये पांडे वंश के हैं। कुमाॅऊ से सम्वत 1700 में आए और यहां जुगड़ी गांव में बसे।
*नोट :-* यह जानकारी उत्तराखंड में उपलब्ध तमाम पुस्तकों के आधार पर उत्तराखंड के कई शोधकर्ताओं के आलेखों पर आधारित है। हमारा उद्देश्य किसी की भी भावनाओं को ठेस पहुंचाने का कदापि भी नहीं है।
[9/17/2023, 8:52 PM] Jasvant Bisht Police Ji: *गढ़वाली डिक्शनरी* अवश्य पड़े प्लीज🙏🏻🕉️🕉️🕉️ लक्ष्मी
शरीर संबंधी *गढ़वाली* अनुभूति बोधक शब्द।👉
*कृपया प्रवासी पहाड़ी बच्चों को जरूर पहाड़ी सिखाऐं l*
1. *कबलाट*- भूख के कारण होने वाली बैचैनी।
2. *धगदयात*- डर के कारण मन मे उत्पन्न होने वाली चिंता।
3. *चमराट*- कटे या जले घाव पर होने वाली जलन।
4. *चचड़ाट*- तीव्र पीड़ा से होने वाली अनुभूति।
5. *चमलाट*- घाव अथवा त्वचा पर होने वाली मीठी खुजली।
6. *झमज्याट*- किसी कारणवश शरीर में सरसराहट के साथ खुजली एवम पीड़ा की मिली जुलु अनुभूति
7. *पुल्याट*- अति प्रसन्नता प्रकट की अनुभूति, जो छिपाए न छिपे
8. *फिफड़ाट*- आंतरिक दर्द या बेचैनी
9. *घबलाट*- शरीर पर किसी कीड़े के रेंगने का अहसास।
10. *ममराट*- नुकसान होने पर उत्तेजना पूर्ण कष्ट।
11. *बबराट*- तेज पीड़ा की स्थिति में कराहट।
ध्वनि संबंधी *गढ़वाली* अनुभूति बोधक शब्द।
1. *अड़ाट*- भूखे और डरे पशुओं की आवाजें।
2. *किराट*- शिशुओं के रोने की आवृत्ति।
3. *किकलाट*- जोर-जोर से बोलने पर होने वाला असहनीय शोर।
4. *खिकचाट*- व्यर्थ में हँसना।
5. *ख़बड़ाट*- वस्तुओं के गिरने या टकराने से होने वाली आवाज।
6. *गुमणाट*- धीमी और अस्पष्ट रूप से सुनाई देने वाली आवाज।
7. *घुंग्याट*- गाड़ियों की आवाज।
8. *छिबडाट*- झाड़ियों या सूखे पत्तों में चलने की आवाज।
10. *डिमड्याट*- ऊपरी मंजिल पर उछलकूद से उत्पन्न ध्वनि।
11. *लुल्याट*- जोर-जोर से रोने वाली आवाज।
12. *सुंस्याट*- नदी या गदेरों के बहने से उत्पन्न ध्वनि।
😍😍😍 *गढ़वाली crash course dictionary.*
इन शब्दों को अपनी दिनचर्या में शामिल कर सकते हैं
*Excuse me - इनै सुणो*
*what- क्या च*
*why- किले*
*really - सच माँ*
*oh no- न रे ना*
*whats up- क्या हूणु च*
*done - ह्वे गे*
*not done - नि ह्वे*
*Let him go - जान द्यो वैथे*
*i dont know- मिथै नि पता*
*hurry - जल्दी / सरपट*
*Smooth - चिफुलू*
*Lady - कज्याण*
*man - आदिम*
*Father- बुब्बा जी*
*mother - ब्वे*
*Resolved - ह्वेगे*
*Sleeping- सीणु छौं*
*run away - दौड़ी कि जा*
*stay here - यखी रै*
*now - अब्बी*
*not now- अब्बी ना*
*never- कब्बी ना*
*Wife - ब्वारी*
*Boy- छ्वारा*
*Girl- छोरि*
*hey dude- हा रे लाटा*
*hey girl- हां रै लाटी /खड्योणी*
*Come here- इनै आ*
*Go There- फुण्ड जा*
*Same to same- जन्यकि तन्नी*
*Sunlight - तड़तुड़ घाम*
*very- भौत/बन्डया*
*less - ज़र्रा*
*basket- कंडू / डलुणु/ छटणा*
*gate- दरजू/मोर-सगांड़*
*Head -मुंड*
*Face -मुक*
*cheek -गल्वड़ी*
*Finger - अंगुला*
*rat- मूसु*
*Confused- लाटु,*
*गढ़वाली कोचिंग क्लास ..*
*पहाड़ की चोटी को यहां डाण्डा कहते हैं ।*
*बर्तनों को भाण्डा कहते हैं।*
*छोटे बच्चों को नौना कहते हैं*
*बुजुर्गों को दाना कहते हैं।।*
*साथक को दगड़्या कहते हैं ।*
*लड़ने को झगड़ा कहते हैं।*
*मोटे को तगड़ा कहते हैं ।*
*खरोंच को रगड़ा कहते हैं।।*
*छोटे भाई को यहा भुल्ला कहते हैं ।*
*किचन को यहा चुल्ला कहते है।*
*ब्रिज को यहा पुल कहते है ।*
*नहर को यहा कूल कहते है।।*
*पत्नी को यहाँ जनानि कहते है*
*जी मचले तो स्याणी कहते हैं*
*बियाई भैंस को लैन्दी कहते हैं ।*
*सब कुछ है पर छैन्दी निछैन्दी कहते है ।*
*आदमी को यहाँ मैस कहते हैं ।*
*बुफैलो को यहाँ भैंस कहते है।*
*जीजा को यहा भीना कहते हैं।*
*सोने को यहाँ सीणा कहते है।*
*फाटा लगाने को जोल कहते हैं*
*गोबर को यहाँ मोल कहते हैं ।*
*चावल को यहाँ भात कहते हैं ।*
*शादी को व्यौ कहते हैं। और*
*चौड़े वर्तन को परात कहते हैं ।*
*पित्र तर्पण को शराद कहते है ।*
*नमक को हम लोण कहते हैं ।*
*जंगल को हम बण कहते हैं।*
*पहाड़ को हम ढैया कहते हैं ।*
*खेत को हम पुंगड़ा/डोखरा कहते हैं ।*
*और सीधे रास्ते को सैंण कहते हैं ।*
*सिर दर्द को हम मुंडरू कहते हैं ।*
*गिरने को हम फरकेगे/लमडन कहते हैं ।*
*चालाक को हम चकड़ेत बोलते हैं ।*
*और सीधे को लाटा बोलते हैं ।*
*तेज लड़कों को हम चंट बोलते हैं ।*
*पैजामे को हम सुलार कहते हैं*
*फीवर को हम जैर-बुखार कहते हैं*
Post Top Ad
Responsive Ads Here
Sunday, August 25, 2024
Home
Unlabelled
ग्राम सभा गढ़ वासियों की सिलारी में नागराज देवता पूजन दिवस पर विशेष कवरेज देखिए GANGA 24 EXPRESS पर
ग्राम सभा गढ़ वासियों की सिलारी में नागराज देवता पूजन दिवस पर विशेष कवरेज देखिए GANGA 24 EXPRESS पर
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Post Top Ad
Responsive Ads Here
Author Details
MAHESH BAHUGUNA={MEDIA ANCHOR&CRIME REPORTER}=8126216516=CONDUCTING CAREER COUNSELLING ,MOTIVATIONAL AND COMPETITIVE ORIENTATION CLASSESS
No comments:
Post a Comment